भारत के पड़ोस में आया मस्क का सेटेलाइट से चलने वाला इंटरनेट, भारत में कब होगी एंट्री, क्या होगा फायदा


भारत के पड़ोस में आया सेटेलाइट से चलने वाला इंटरनेट, भारत में कब होगी एंट्री
यह सेवा 6,750 से अधिक लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट्स के विशाल नेटवर्क पर आधारित है.
हाइलाइट्स
  • श्रीलंका बना स्टारलिंक सेवा वाला तीसरा दक्षिण एशियाई देश.
  • भारत में लॉन्च की प्रक्रिया अंतिम चरण में, IN-SPACe की मंजूरी बाकी.
  • सेवा से ग्रामीण क्षेत्रों को तेज और स्थायी इंटरनेट कनेक्टिविटी मिलने की उम्मीद.
नई दिल्ली. एलन मस्क की स्पेसएक्स द्वारा संचालित स्टारलिंक ने अपनी सैटेलाइट इंटरनेट सेवा को श्रीलंका में औपचारिक रूप से लॉन्च कर दिया है, जिससे यह दक्षिण एशिया में तीसरा देश बन गया है, जहां यह सेवा उपलब्ध है. इससे पहले बांग्लादेश और भूटान में स्टारलिंक की सेवाएं शुरू हो चुकी हैं. स्टारलिंक ने अपनी आधिकारिक X प्रोफाइल के माध्यम से इसकी घोषणा की, जिसमें कहा गया, “श्रीलंका में अब हाई-स्पीड, लो-लेटेंसी इंटरनेट उपलब्ध है!”

यह सेवा 6,750 से अधिक लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट्स के विशाल नेटवर्क पर आधारित है, जो पारंपरिक जियोस्टेशनरी सैटेलाइट्स की तुलना में देरी को काफी कम करती है. इस तकनीक के जरिए स्टारलिंक दूरस्थ और कम विकसित क्षेत्रों में इंटरनेट पहुंचाने में सक्षम है, बिना भारी-भरकम ग्राउंड इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे फाइबर ऑप्टिक केबल्स या सेलुलर टावरों की जरूरत के.
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श्रीलंका के लिए यह कदम महत्वपूर्ण है, जहां ग्रामीण और दुर्गम इलाकों में विश्वसनीय इंटरनेट की कमी रही है. स्टारलिंक की यह सेवा इन क्षेत्रों में तेज और भरोसेमंद कनेक्टिविटी लाने का वादा करती है, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य और छोटे व्यवसायों को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है. श्रीलंका ने स्टारलिंक को तेजी से नियामक मंजूरी दी, जो इसके विस्तार की गति को दर्शाता है.

भारत में स्टारलिंक की प्रगति और संभावित लाभ

दूसरी ओर, भारत में स्टारलिंक की राह कुछ जटिल रही है, जहां इसने नियामक बाधाओं का सामना करना पड़ा है. हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार, डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशंस (DoT) ने स्टारलिंक के लिए ज्यादातर नियामक अड़चनों को हल कर लिया है. ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्युनिकेशंस बाय सैटेलाइट (GMPCS) लाइसेंस पिछले महीने जारी होने के बाद, अब भारतीय नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर (IN-SPACe) से अंतिम मंजूरी और स्पेक्ट्रम आवंटन की प्रतीक्षा है. संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बयानों से संकेत मिलता है कि दो महीने के भीतर स्टारलिंक की औपचारिक शुरुआत हो सकती है, बशर्ते सुरक्षा और डेटा लोकलाइजेशन जैसे मुद्दों पर शर्तें पूरी हों.

भारत को क्या फायदा होगा?

स्टारलिंक के भारत में आने से कई लाभ संभावित हैं:

ग्रामीण क्रांति: पहाड़ी और दूरदराज के इलाकों में हाई-स्पीड इंटरनेट से डिजिटल समावेश बढ़ेगा.
तेज और विश्वसनीय कनेक्टिविटी: LEO सैटेलाइट्स से कम लेटेंसी वाला इंटरनेट ऑनलाइन शिक्षा, गेमिंग और वर्क फ्रॉम होम को बढ़ावा देगा.
आर्थिक विकास: छोटे उद्यमों और ई-कॉमर्स को नई गति मिलेगी.
आपदा प्रबंधन: बाढ़ या भूकंप जैसे संकटों में संचार को बनाए रखने में मदद मिलेगी.
हालांकि, इसकी लागत (संभावित रूप से 33,000 रुपये का हार्डवेयर और 3,000-4,000 रुपये मासिक) और स्थानीय टेलीकॉम कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा चुनौती हो सकती है. फिर भी, स्टारलिंक भारत की डिजिटल महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में अहम भूमिका निभा सकता है, बशर्ते नियामक प्रक्रिया सुचारू रूप से पूरी हो.
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